इसी भीड़ में संभव है प्रेम इसी तुमुल कोलाहल में जब सूरज तप रहा है आसमान में जींस और टी-शर्ट पहने वह युवती बाइक पर कसकर थामे है युवक चालक की देह
इसी भीड़ में संभव है प्रेम
हिंदी समय में पंकज चतुर्वेदी की रचनाएँ